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सत्तर बरस आज़ादी के
याद करो कुर्बानी के
कैसे वो दिवानें थे
कैसे वो परवानें थे
वो तो सब रखवाले थे
वो तो सब मतवाले थे
सत्तर बरस आजा़दी के
याद करो कुर्बानी के
हँसते हुए प्राण गंवाए
फिर वीर शहीद कहलाए
माँ का हर वचन निभाया
देकर रक्त कर्ज़ चुकाया
सत्तर बरस आज़ादी के
याद करो कुर्बानी के
आज़ादी की मशाल थे
भारतभूमि की ढाल थे
शौर्य के अंगारे थे
इंकलाब के नारे थे
सत्तर बरस आज़ादी के
याद करो कुर्बानी के
साहस की उड़ान थे
वीरता की पहचान थे
हर वीर एक ज़्वाला
क्रांति का मतवाला था
सत्तर बरस आज़ादी के
याद करो कुर्बानी के
जब विपदा आन पड़ी थी
जवानी कुर्बान खड़ी थी
शौर्य बसंत आया था
रंग बसंती छाया था
सत्तर बरस आज़ादी के
याद करो कुर्बानी के
बलिदानी उनका कर्म था
मर मिटना जिनका धर्म था
वन्दे मातरम् एक गान था
तिरंगा जिनकी शान था
सत्तर बरस आज़ादी के
याद करो कुर्बानी के
उनके शौर्य गीत गाएँ
वीरों को अमर बनाएँ
सशक्त भारत वर्ष बनाएँ
शत्रु को फिर सबक सिखाएँ
सत्तर बरस आज़ादी के
याद करो कुर्बानी के
रचयिता
मोहम्मद आरिफ
(कवि, लेखक, गीतकार)
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743
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