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ग़ज़ल

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ग़ज़ल

हर इक चेहरे पे देखो कैसा डर है
बहुत दुश्वार जीवन का सफर है।
हमारे पूर्वज ज़िस पर चले हैं
हक़ीकत में वही सच्ची डगर हैं।
दिखाई और कुछ देता नहीं हैं
जमाल-ए-यार पर अपनी नज़र हैं।
क़यामत आ गई नज़दीक कितनी
मगर इंसान इससे बेख़बर हैं।
अभी टूटी नहीं साँसों की ढोरी
बदन मेरा लहू से तरबतर हैं।

रचयिता

मोहम्मद आरिफ

(कवि, लेखक, गीतकार)

50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड

भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)

मो. 9009039743

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