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क्षणिकाएँ

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क्षणिकाएँ


सुना है
बाज़ारवाद के
जमाने में
सब कुछ बिकता है
सोचा मैंने भी
चलो, अपना ईमान बेच दूँ
लेकिन बाज़ार में
लंबी लगी थी कतारें
ईमान बिक रहा था
कौडि़यों के दाम में।
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बच्चे की माँ
कब से जि़द्द कर रही थी कि
बच्चे का एडमिशन करवा दो
दिनभर करता है शैतानियाँ
बोझ बनता जा रहा है
लेकिन मैं इस बात से डरा था
बच्चा किताबों के बोझ से
झुक जाएगा।

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मेरे शहर ने
करली है काफी तरक़्क़ी
फैल गया है बहुत
हो गया है लम्बा-चैड़ा
मगर
ग़रीबो की रोज़ी-रोटी
और आशियानों को ठहाकर।

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धर्म का लगातार
हो रहा प्रचार-प्रसार है
मगर अफसोस
फल-फूल रहा व्याभिचार है।

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हम एक ऐसे
अंधे युग में
जी रहे हैं
जहाँ आँखों पर
पट्टी बंधी होने पर
सब कुछ दिख रहा है।

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प्लास्टिक बोतल में
मिनरल वाटर शुद्ध है
मगर मोक्षदायिनी
गंगा का जल
प्रदूषित है।

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कलियुग में
गंगा प्रदूषित
होती जा रही है
मगर मोक्षदायिनी
होने का
कत्र्तव्य निभा रही है।

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वे नैतिकता का
पाठ पढ़ाते रहे
भ्रष्टाचार से
रिश्ता निभाते रहे।

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तालाबों के तटबंध
टूट रहे हैं
पेड़-पौंधों से संबंध
छूट रहे हैं।
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काली कमाई से
उनका नाता रहा
तमाम हठकंडे वह
आज़माता रहा।

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कलयुगी
धर्म के ठेकेदार
कर रहे हैं व्याभिचार।

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धर्म, बाज़ारवााद की
भेंट चढ़ गया
प्रवचन ऊँचे दाम
हो गया।

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अन्नदाता
किसान की
बस इतनी-सी शान है
खुदकुशी उसकी पहचान है।

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इन दिनों
सांसदों-विधायकों की
बस यही पहचान है
जिनके होठों पे जह़रीले
और तीखें बयान है।

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काली कमाई का कमाल
है ऊँचे ठाट-बाट
नित-नए दिन मालामाल।

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रचयिता
मोहम्मद आरिफ
(कवि, लेखक, गीतकार)
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743

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