Hindi Kavita
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उम्र गुज़री है मिरी दर्द को सहलाने में
देर अब कुछ नहीं, पैमाना ये भर जाने में।
सारी दुनिया को नवाज़ा है ज़रा ये तो बता
जि़क्र मेरा भी कहीं है तिरे अफसाने में।
एक दिन हम पे भी साक़ी की नज़र तो होगी
इसी उम्मीद पे बैठे रहे मयखाने में।
कोई ये कातिब-ए-तक़दीर से पूछे तो सही
क्या तकल्लुफ़ है खुशी को मेरे घर आने में।
बढ़ गया बोझ गुनाहों का तो डूबेगी ज़रूर
क़ायदा है अभी कश्ती से उतर जाने में।
हफ्ते, अशरे में मिला करती थी ‘आरिफ’
देर लगती ही नहीं अब तो ख़बर आने में।
रचयिता
मोहम्मद आरिफ
(कवि, लेखक, गीतकार)
(India Book of Records Holder)
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743
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