ग़ज़ल
ग़ज़ल
यार के दर से जो भी पाता हूँ
वो ज़माने को बाँट आता हूँ।
हर तरफ़ ज़ुल्म के नज़ारंे हैं
अपनी गरदन जिधर घुमाता हूँ।
क्यूँ मेरे मुंह पे हाथ रखते हो
जब मुहब्बत के गीत गाता हूँ।
लोग नफ़रत से देखते हैं मुझे
प्यार की दास्ताँ सुनाता हूँ।
दिल में खुशियां तरंग लेती हैं
बोझ ग़म का मैं जब उठाता हूँ।
रूठ जाता है जब मेरा महबूब
हँस कर ‘‘आरिफ़’’ उसे मनाता हूँ।
रचयिता
मोहम्मद आरिफ
(कवि, लेखक, गीतकार)
(India Book of Records Holder)
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743, 7806002306
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