Menu
blogid : 13500 postid : 725960

ग़ज़ल

Hindi Kavita
Hindi Kavita
  • 161 Posts
  • 54 Comments

ग़ज़ल

रिश्तों की टूट फूट है सूने खण्डहर में हूँ
अब साचने लगा हूँ कि मैं कैसे घर में हूँ।
जब तक थी मेरी माँ, हुआ करता था घर भी घर
लगता है अब तो बस यूँ ही दीवार-ब-दर में हूँ।
कुछ बेरूखी किसी की थी मायूस हूँ बहुत
मैं उस से दूर होके भी उस की नज़र में हूँ।
संसार में हैं कितने ही रोगी निराशा के
अब खोज कर रहा हूँ कि उन की ख़बर में हूँ।
‘आरिफ’ ने जि़न्दगी में बनाए हैं कीर्तिमान
बेनाम आज भी मैं तुम्हारे शहर में हूँ।

रचयिता
मोहम्मद आरिफ
(कवि, लेखक, गीतकार)
(India Book of Records Holder)
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743, 7806002306

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply