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ग़ज़ल

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ग़ज़ल

हादसों को जि़न्दगी का हम सफर बना लिया
जिस पत्थर से ठोकर लगी उसे गले लगा लिया।
ददZ से जब आह निकली तो इसे दबा लिया
हम ने हंस हंस कर गले से ग़मों को लगा लिया।
मौत़ से बेखौफ़ होकर निकले थे हम राह में
हौंसलों से पत्थरों को मोम भी बना लिया।
दोस्तों ने राह में कांटे ही काँटे बोये थे
हम ने अपने खून से फूलों को खिला लिया
खत्म होती ही न थी अपनी अधूरी ख्वाहिशें
‘आरिफ’ हमने फिर दुःखों को चिराग बना लिया।

रचयिता
मोहम्मद आरिफ
(कवि, लेखक, गीतकार)
(India Book of Records Holder)
50, सिद्धवट मागZ, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743, 78060023

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