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हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-

Hindi Kavita
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हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-

हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-
मुझे पीड़ा ने पाला है
सजाया, सँवारा है
जीने का भरोसा जगाया है
टूटकर पुख्ता बनाया है
हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-
मैं लड़खड़ाता हूँ
फिर संभल जाता हूँ
मैंने वेदना का मधुवन सजाया है
वेदना की बहारे है
चीखों का बसंत है
आहों की फुलवारियाँ है
हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-
मुझे सिर्फ दुखों का अहसास है
दुःख हरपल मेरे साथ है
दुःख ही चुराकर लाता है
कहीं न कहीं से खुशियाँ
हर्षोल्लास की बनती लडि़याँ
मेरे दुःख की किसी को आहट नहीं
खुशियों के पीछे दौड़ूँ चाहत नहीं
हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-
जिन्दगी मेरी वेदना का कोश है
पीड़ा की अग्नि में पलकर
कंचन बनकर निकलता हूँ
फिर जीने के वास्ते
जिन्दगी को मुँह चिढ़ाता हूँ
गिर-गिरकर संभलता हूँ
आँसुओं को खुशी के दामन में
चुपचाप छिपा लेता हूँ
हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-
मैं बेचैनी के संग रहता हूँ
फिर भी खुलकर हँसता हूँ
दर्द के लिए खुश बंजारा बनता हूँ
साँसों का कर्ज चुकाता हूँ
जीने की कीमत
खुश रहकर उतारता हूँ
मचले अगर आहों का समंदर
अपने दामन में समा लेता हूँ
जि़द्दोजहद रोज जुटाता हूँ
हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-
रात करवटों में गुजारता हूँ
चीख अगर निकले तो
उसके मुँह पर ताला लगाता हूँ
रात-रात भर दर्द को सहलाता हूँ
उठकर कभी
दर्द भरा गीत गुनगुनाता हूँ
बीती यादों का साज छेड़ता हूँ
हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-
मैं एक निःशक्त हूँ
आत्मबल से सशक्त हूँ
रोज दुर्गम राहों को पार करता हूँ
हारकर जीत जाता हूँ
सक्षम को भी परास्त करता हूँ
सामथ्र्यवान के लिए आदर्श बनता हूँ
असंभव को भी संभव बनाता हूँ
हरदम कुछ नया करने के
सपने बुनता रहता हूँ
सपनों को हकीकत में बदलता हूँ
हाँ, मैं जिन्दा हूँ कि-
मैं जिन्दा रहने के लिए जिन्दा हूँ
टूटकर बिखर कर जिन्दा रहने के लिए
वेदना-पीड़ा की सुरंग से
गुजरकर निकलने के लिए
रोज एक नया दर्द सहने के लिए
जिन्दा रहने की बुनियाद बनाने के लिए

रचयिता
मोहम्मद आरिफ
(India Book of Records Holder)
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743, 7806002306

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