Hindi Kavita
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जब कभी शहर में दंगा होता है
अख़बारी सुर्खियों से डर लगता है।
अपने लिए होते हाथों में खंजर
तब भाई-भाई से डर लगता है
चैन-ओ-अमन की बुलबुल मरती है
तब खूनी सड़कों से डर लगता है।
जब डरे सहमें होते है चेहरे
फैली अफवाहों से डर लगता है।
‘आरिफ’ कौन रोकेगा यह साजिश
बार-बार के कर्फ्यू से डर लगता है।
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