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हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
जो सूरज की
पहली किरण के साथ
खोलता है आँखें अपनी
नये भरोसे के साथ
फिर लेता है अँगड़ाई
पनघट पर पनिहारि ने
करती है बीती रात की बातें
जिनकी कलाईयों की चूडि़या.
सुनाती है जीवन के राग
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
बैलों की गली घंटियाँ
गायों के रंभाने की आवाजे
बकरियों की मैं….. मैं….. मैं…….
चरवाहों की पुकार
जीवन में घोलते है
आशा के रस
बच्चों की किलकारियाँ
पत्नी की मान मनुहार
पति का प्यार
बुजुर्गों की फटकार है
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
घरों में मिट्टी के चूल्हे पर
सींकती है ज्वार, बाजरे की रोटियाँ
संजागीत गाती है लड़कियाँ
ससुराल से लौट आई लड़की से
सखियाँ पूछती है सुहागरात की बातें
फिर उसे चिढ़ाती है
लड़की सकुचाती है
मारे शरम के भाग जाती है
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
सुनकर सरकारी स्कूल की घंटी
बच्चों का झुण्ड हंगामा करता है
एक दूसरे को चिढ़ाता है
मास्टर को सताता है
ककड़ी चने भुट्टे लाना नहीं भूलता है
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
बेटियाँ पढ़ाई में अव्वल रहती है
लड़के बाण के हाथों पिटते है
बहुएँ सदा घूँघट में मिलती है
बुजुर्ग पगड़ी पहने होते है
तालाब में मछलियाँ होती है
इमली के पेड़ पर लड़के चढ़ते है
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
जहाँ कड़वे मीठे नीम है
आम, आँवला, अमरूद है
घर-आँगन में तुलसी है
चैपालों पर ताश के पत्ते है
चिलम, बीडि़यों का धुआँ है
ग्राम पंचायत में शिकायतों का ढेर है
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
दोपहर में बुजुर्ग
नीम छाँव तले खर्राटे भरते है
बच्चे लुका छिपी खेलते है
पतंग का मांझा सूता जाता है
पीपल में चुड़ैल होने
बावड़ी में भूत होने के चर्चे होते है
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
दिवाली की तैयारियाँ
लिपा-पोती से शुरू होती है
पीली सरसों बोई जाती है
पलाश फागुन की दस्तक देते है
आम पर बैठे कोयल कूकती है
मौत की खबर से सन्नाटा छा जाता है
बेटियाँ बाप से झगड़ी है
मेला चकने की जिद्द बच्चे करते हैं
सबके सुख-दुःख साझे होते है
हाँ! आज भी एक गाँव ऐसा है
मोहम्मद आरिफ
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड़
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
9009039743, 7806002306
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