Hindi Kavita
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देखता हूँ रोज तुम्हें
मर्यादा की
झीनी चादर से
संकोच की साँसों के साथ
बार-बार विवश हो जाता हूँ
पलकों पर
डाल नहीं सकता
नियंत्रण की बेडि़याँ
पंजाब-सी मस्ती है
कश्मीर-सा सौंदर्य
डल झील में
तैरते शिकरे के मानिन्द आँखें
ऊँचा, भरापूरा शरीर
संुदरता की मूरत
चेहरे पर दमकता सूरज
चाल दीवानगी के
हिचकोले लेती
कितना कुछ समा रखा है तुमने
अडिग, अविचल, निडर
स्वाभिमान की चिंगारी हो
फिर भी न जाने कौन सी
पा रही हो सज़ा
दुःख को आँचल से
सदा बाँधे रखती हो
क्यों पा रही हो
एक नारी होने की सज़ा
घरेलू हिंसा का होकर शिकार।
मोहम्मद आरिफ
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743
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